हमारी अधूरी कहानी .......

       याद आता वो वक्त जब हमारी मंजिल एक होते होते भी एक नही हो पाई,। सारी बाते लगभग तय होने के बाद  भी ऐसा कैसे हो गया । किस्मत तो क्या  ? कभी कभी लोगो की बातें सुनकर  हम अपना  विचार बदल देते है । ये कहावत सही है सुनो सबकी , करो मन की । वाकई सही बात है  और  हमारी मंजिल अलग अलग हो गई  । 
         फिर कई अरसो के बाद  हमारी मुलाकात हुई,  मैने कभी सोचा भी नही था कि हम इत्तफाक से मिलेंगे । कभी हम रिश्तो मे बँधे होते, मगर तकदीर के आगे किसी का वश नही ।  मिले तो हम ऐसे मिले कि हम कुछ भी न  बोल पाए। सिर्फ हम एक दूसरे को निहारते रहे। 
              मेरे साथ बीती घटना के बारे मे उन्हे  पता था, परेशान थे वो , मन मे प्रश्नों ने उथल पुथल मचा रखी थी कि कैसे पूँछू ,सबके बीच घिरे हुए थे हम ,उसी वक्त मौका देखते हुए  ,उनका धीरे से मुझसे पूछना-  तुम  ठीक हो न । मेरे कुछ कहे बिना ही वो मुझे समझ गए और बोले - चिंता मत किया कर ,मस्त रहा कर ,खुश रहा कर ।  उनकी बाते सुनकर मेरे आँखो से आँसू छलक  आए । किस्मत ने ऐसी ठोकर मारी कि सब कुछ सपना ही बन गया ।  
          आज भी अफसोस होता है कि काश ! तुम मेरी जिंदगी में होते , तो मेरे साथ ऐसा नहीं होता । सपना समझकर भूलने की कोशिश करती हूँ मगर रह रह कर आँखे छलक जाती है। मुझे तुम पर यकीन था  क्योकि तुम्हारा मेरी फिक्र करना ,मेरी परवाह करना , ये सब प्यार ही तो था । समाज और परिवार के दायरे मे रहकर न तुमने कुछ कहा और  न मैने । मानो ऐसा लगता है हम दोनों  परिवार के खातिर चुप हो गए।  
                 मगर अब  समय काॅफी बीत चुका,  जिस मुकाम पर  हम है उसे ही स्वीकार करना है। मेरी हर  दुआओं में हमेशा तुम हो ,कभी मुझे जरूरत हो तो मेरे साथ एक अच्छे दोस्त बनकर मेरा  साथ देना। 
                        अंशु स्वर्णकार 
       



       
        

Comments

Post a Comment