लाड़ली
लाड़ली अब पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी की तलाश में है ,मगर लगता है - बात आज की ही है । याद आता है वो हर एक पल जब तुम गोद मे आई ,कहते है कि माँ जब से गर्भवती होती है तो जो माँ सोचती है कि "लड़का होगा या लड़की" वही होता है । जो भी देखे वो बोले कि लड़का होगा , मगर मै तो हमेशा से प्यारी सी बेटी ही चाही ,और मैने उसका नाम भी सोच लिया ।
इंतजार की घड़ी पूरी होने का वक्त आया ,जब डॉक्टर ने मुझे बताया और दिखाया तो खुशी से आँखे छलक गई। इतनी नाजुक सी तुम -कि लगता था कि छुने मे भी दर्द न हो तुम्हे। घर मे सबकी लाड़ली , पापा की पिंकी, मम्मा की छुनछुन , दादी की सोन चिरैया ,दादा की पहलवान, नानी की रिया , मौसी का प्यारा बच्चा,सभी प्यार भरे नाम से पुकारते फिर आई चाचा की बारी ,चाचा ने नाम रखा "राशि " ।
३ साल की होते ही तुमको विद्यालय मे दाखिला करवाया गया ,२ साल पढ़ने के बाद दूसरे विद्यालय मे दाखिला करवाए जो घर से काफी दूर था
विद्यालय कि पहला दिन हम तुम्हे छोड़कर आए,और १ बजे बस का इंतजार करती रही ,बस से स्टाफ के सभी बच्चे उतरे मगर तुम नही आई , मेरा रो- रो हाल बुरा हो गया फिर मै विद्यालय गई तो देखी मेरी छुनछुन बिस्किट खा रही थी । घर आकर उसे समझायी लाडो अपनी बस मे आया करो।
जब भी सोमवार को गणित की परीक्षा रहती तो हमेशा बोलती मम्मी आज पेट दर्द हो रहा तो नही जाना ,माँ की ममता हार जाती और उस दिन वो विद्यालय नही जाती ,थोड़ी देर बहाना करके सोती और जैसे तैसे उठ फिर मस्ती करती ।फिर धीरे धीरे उसकी शरारत समझ आयी ।
शरारत करने वाली मेरी लाडो ग्रेजुएशन कर ली । उसका घर में चहकना, चिल्लाना, मस्ती करना, इसी से घर की रौनक है, हर त्यौहार की रौनक मेरी लाडो से है। कुछ समय के बाद अब बाहर जाएगी ।
देहरादून जैसी नई जगह ....., सोच कर साँसे थम सी जाती है । उसके जुनून और जज्बात के आगे, मै पीछे हो जाती हूँ ।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह अच्छे सी नौकरी करने लगे, और अपनी मंजिल को हासिल कर ले।
अंशु स्वर्णकार
भिलाई
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